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पंचामृत
किया। उसी समय उसे स्मरण आया कि 'क्रोध के समय शांति रखनी चाहिए। राजा ने सोचा-अरे, यह तीसरी शिक्षा जिसके लिए मैंने एक लाख रुपया खर्च किया है, इसे भी जीवन में धारण कर देखना चाहिए कि यह शिक्षा कितनी उपयोगी है। अतः राजा ने तलवार म्यान में डाल दी और धीरे-धीरे आगे बढ़ा। उसने देखा पुरुष वेष में अन्य कोई व्यक्ति नहीं है, उसी की पुत्री बैठी हुई अपनी माँ को कह रही हैमाँ ! भावी को कौन टाल सकता है ? पूज्य पिताश्री यदि हमारे सद्भाग्य होंगे तो अवश्य ही बच जाएँगे। सर्प उनका बाल भी बांका न कर सकेगा। यदि उनकी आयुष्य ही पूर्ण हो गयी है तो कोई भी प्रयत्न सफल नहीं हो सकता।
राजा ने लुक-छिपकर अपनी पुत्री की बात सुनी। राजा को आश्चर्य हुआ---यदि मैं क्रोधावेश में पत्नी और पुत्री को समाप्त कर देता तो जीवित होने पर भी मृत की तरह जीवनयापन करना पड़ता। मैंने तीसरी शिक्षा का भी प्रत्यक्ष लाभ देख लिया है।
राजा ने प्रगट होकर कहा-पुत्री ! तूने पुरुष वेष क्यों धारण किया ? रानी और पुत्री ने राजा के चरणों में अपना सिर नवा दिया। राजा ने कहा
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