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१० पंचामृत तक सारे मार्ग को सजा दिया जाय। सारे मार्ग में सुगन्धित पुष्प बिछा दिये जाएँ। गुलाबजल, केतकी और केवड़े के पानी को छिटका जाय । सुगन्धित अगरबत्तियाँ स्थान-स्थान पर जलाई जायँ। सुगंधित दूध के प्याले जिनमें शक्कर डाल रखी हो, यत्र-तत्र रखे जायें। साथ ही संगीत और बीन की मधुर स्वरलहरियाँ झंकृत हों।
राजा के आदेश से सारा कार्य उसी समय हो गया। स्वयं राजा नागराज के स्वागत हेतु महल के द्वार पर खड़ा हो गया। नागराज पहाड़ की बांबी से निकलकर राजमहल की ओर प्रस्थित हुआ। उसने सारा मार्ग सजा हुआ देखा। मधुर सौरभ से वह मुग्ध हो गया । दूध पीता हुआ फूलों पर लेटता हुआ कभी धीरे तो कभी तेज गति से दौड़ता हुआ राजमहल की ओर बढ़ा । अन्धेरा फैलने लगा था, अतः दीपक का प्रकाश राजा के आदेश से हो गया। ज्यों ही राजा ने दीपक के प्रकाश में देखा कि नागराज महल में प्रवेश करने के लिए द्वार की ओर आ रहा है, राजा ने आगे बढ़कर कहा-नागदेव ! आपका स्वागत करते हुए मेरा मन प्रमुदित है। यह कहकर राजा ने अपना पांव आगे बढ़ाते हुए कहा-आप मुझे काटने के लिए पधारे हैं। आप काटिए। मैं प्रस्तुत हूँ।
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