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तीन लाख की तालयात ही रह गया। राजा को अनुभव हुआ कि मैं ब्राह्मण की शिक्षा के अनुसार ब्राह्ममुहूर्त में उठा, इस कारण मुझे पूर्व ही अपनी मृत्यु का समाचार मिल चुका है। मैं उपाय कर सकता हूँ। राजा राजमहल में पहुँचा। सभी सभासदों को उसने बुलाया और देवी के कथन को उनके सामने रखा। राजा के सभी अमात्य देवी के कथन को सुनकर चिन्तित हो उठे। राजा के कोई पुत्र नहीं था। अतः राज्य का संचालन कौन करेगा-यही एकमात्र चिन्ता उन्हें सता रही थी। तभी राजा ने कहा-राज्य का संचालन मेरी पुत्री करेगी, पुत्री ही मेरे राज्य की अधिकारिणी है। पहले भी जिन राजाओं के पुत्र न थे उनकी पुत्रियाँ ही राज्य करती रहीं। इसलिए मेरे बाद मेरी पुत्री राज्य करेगी।
राजा एकान्त में बैठा हुआ सोचने लगा-'मैंने एक-एक लाख में तीन बातें खरीदी थीं। पहली बात ब्राह्ममुहूर्त में उठने से मुझे आने वाली मृत्यु का पता लग गया। तो दूसरी बात 'अपने सन्निकट जो भी आये उसका आदर करना चाहिए।' विप्र की इस बात को भी आजमाना चाहिए।
उसने सभी अनुचरों को आदेश दिया कि नागराज जिस पहाड़ से आने वाले हैं, वहाँ से राजमहल
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