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पंचामृत
जिधर से आवाज आ रही थी उधर ही राजा चल दिया । उसने देखा एक वृक्ष के नीचे एक महिला बैठी हुई आँखों से आँसू बहा रही है । राजा ने उस महिला से पूछा- आप कौन हैं ? और यहाँ पर क्यों रो रही हैं ? यह अरण्यरोदन है । यहाँ आपके रोने को कौन सुन रहा है ?
उस महिला ने कहा- मेरे हृदय में अपार वेदना है । उस वेदना को कम करने का एक ही उपाय है और वह है रोना । रोने से हृदय की वेदना कम हो जाती है । तुमने मुझसे पूछा कि तुम कौन हो ? पर मैं क्या बताऊँ ? मैं सामान्य महिला नहीं, किन्तु विशिष्ट महिला हूँ । मैं मानवी नहीं, देवी हूँ। मैं इस राज्य की संरक्षिका हूँ । कल यहाँ के प्रजावत्सल राजा सूर्यसेन का एक सर्प के द्वारा निधन हो जाएगा। इस नगर की दक्षिण दिशा में जो पर्वत हैं वहाँ से एक साँप निकलकर राजा को डंसने के लिए महल में आएगा । कल सन्ध्या के पूर्व ही सांप राजा को डस लेगा । उसके तीव्र जहर से राजा उसी समय मृत्यु को प्राप्त होगा । बड़े-बड़े मन्त्रवादी भी उस सांप के जहर को उतार नहीं सकेंगे । अतः इस कारण मैं रो रही हूँ ।
इतना कहकर देवी अदृश्य हो गई। राजा देखता
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