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________________ १५२ पंचामृत पास बुलाया। जाट बादशाह के पास लौटने लगा। उसे रास्ते में तीन पहरेदार मिले। उन्होंने जाट को रोककर कहा-बादशाह आपको जो भी पुरस्कार प्रदान करें, उसमें आधा हिस्सा मेरा है । दूसरे और तीसरे पहरेदार ने कहा, उसमें चौथा-चौथा हिस्सा हमारा है । जाट ने पहरेदारों की बात स्वीकार ली। वह बादशाह के समक्ष उपस्थित हुआ। बादशाह ने क्रोध से लाल आँखें करते हुए कहा-इस जाट को ५०० कोड़े लगाए जाएँ। सेठ, कोतवाल और गणिका बादशाह के इस आदेश को सुनकर बहुत ही प्रसन्न हुए। जाट ने भी खिलखिलाकर हँसते हुए कहा-आपका आदेश मुझे सहर्ष स्वीकार है। मैं पुनः आपके दर्शन के लिए आ रहा था। उस समय आपके तीन पहरेदारों ने मेरे को कहा ---जो भी बादशाह तुम्हें पुरस्कार दे उसमें प्रधान पहरेदार का आधा हिस्सा है और दो लघु पहरेदारों का चौथा-चौथा हिस्सा है। मैंने उन्हें देने का वचन दिया है। अतः इन पाँच सौ कोड़ों में से २५० कोड़े प्रधान पहरेदार को और १२५-१२५ लघु पहरेदारों को लगा दिये जायं। मैं तो बड़ा सौभाग्यशाली हूँ, मुझे Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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