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________________ विचित्र युक्ति FET उन्हीं पर किया । सेठजी मुझे लेकर आ रहे थे आपके दर्शन के लिए, बीच में कोतवाल साहब ने और बहिनजी ने बाधा उपस्थित की । उन्होंने सेठ को बतायाक्यों जाट के पीछे पड़े हो, जिस फल में रस नहीं है उसे निचोड़ने में फायदा ही क्या है ? जिससे सेठ का रोष कम हो गया और उसने पुनः लौटना चाहा । तब मैंने आपके दर्शन हेतु सेठ के बताये हुए उपाय का प्रयोग कोतवाल और बह्निजी पर किया । जिससे इन्होंने कृपा कर आपके दर्शन करवाये हैं । बादशाह और सभासद जाट की बुद्धि पर प्रसन्न थे । बादशाह ने उसके अपराध को क्षमा कर और कुछ पुरस्कार देकर जाट को विदा किया। जाट आह्लादित होता हुआ राज-परिषद् से बाहर निकला । सेठ ने, कोतवाल ने और गणिका ने एक स्वर से कहा -- बादशाह ने न्याय नहीं किया है। इस प्रकार बदमाश व्यक्तियों को प्रोत्साहन देना उचित नहीं है । ऐसी स्थिति में हम यहाँ नहीं रह सकते । हम यहाँ से अन्यत्र चले जाएँगे । उसे कठोर दण्ड देना चाहिए था बादशाह को भी उनकी बातों में कुछ तथ्य प्रतीत हुआ । पुनः अपने अनुचरों को भेजकर जाट को अपने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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