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________________ न्याय १२५ इज्जत को लूटना और फिर कहना कि मैंने यों ही किया है, क्या शरम नहीं आती? सुलतान की गर्जना से सभी सहम गये। सुलतान ने कहा- अच्छा, तो अपनी बेगम को दरबार में उपस्थित करो। ___ यह बहुत ही लज्जा की बात थी, किन्तु न्याय के दरबार में पिता-पुत्र का प्रश्न नहीं था। युवराज्ञी को दरबार में उपस्थित किया गया। सुलतान ने कहायुवराज ! जरा अपनी बेगम के मुह पर से परदा दूर करो। युवराज ने काँपते हुए हाथों से अपनी बेगम का मुंह उघाड़ा। बादशाह मन ही मन जान रहा था कि उसकी प्रतिष्ठा धूल में मिल रही है। किन्तु न्याय के लिए वे मजबूर थे। उन्होंने उस मोदी को दो पान के बीड़े देते हुए कहा-तुम भी ये बीड़े बेगम पर फेंक दो । मोदी एक क्षण तक सोचता रहा। उसने धीरे से पान के बीड़े शेरशाह सूरी की पुत्रवधू के चरणों पर रख दिये और कहा--जहाँपनाह ! मुझे अच्छी तरह से ज्ञात हो गया कि आपश्री के लिए नगर की प्रत्येक महिला पुत्रवधू की तरह है। आप उसका अपमान अपनी बेटी या पुत्रवधू का अपमान समझते हैं। मैं अपराधी को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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