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________________ १२४ पंचामृत था । पर उस समय वह उसका प्रतिवाद न कर सका । शाही सवारी अपनी शान के साथ आगे निकल गई। मोदी सोचने लगा कि मेरे में सामर्थ्य का अभाव है । इसलिए मैं भावी सुलतान का कुछ भी बिगाड़ नहीं सकता । पर न्याय के लिए सुलतान के द्वार खटखटा सकता हूँ । उसने अपने मिलने वाले मित्रों से पूछा । सभी ने यही सलाह दी सुलतान से तुम न्याय की माँग अवश्य ही करो । मोदी ने शेरशाह सूरी से न्याय के लिए प्रार्थना की । शेरशाह सूरी का दरबार सजा हुआ था । आज उसे अपने युवराज के अपराध पर न्याय करना था । वे बहुत ही बेचैन थे। उनके हृदय में युवराज की यह महान् गलती खल रही थी । वे सोच रहे थे कि ! युवराज ने शाही प्रतिष्ठा को क्षति पहुँचाई है । युवराज को बुलाया गया। युवराज सिर झुकाये हुए राज दरबार में उपस्थित हुआ । युवराज ने अपराध तो स्वीकार कर लिया । पर उसने कहा- मैंने पान के बीड़े बुरी नजर से नहीं फेंके थे। यों ही कुतूहलवश फैंक दिये थे । सुलतान ने दहाड़ते हुए कहा - किसी अबला की Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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