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न्याय
__सुलतान शेरशाह सूरी के उत्तराधिकारी युवराज की सवारी निकल रही थी। नगरनिवासी सवारी को देखने के लिए उमड़ रहे थे । वे अपने भावी सुलतान को देखना चाहते थे। धीरे-धीरे सवारी आगे बढ़ रही थी। मध्य बाजार में एक मोदी की दूकान थी। दूकान पर मोदी की धर्मपत्नी भी बैठी हुई थी। वह सवारी को देखने के लिए आई थी। उसका रूप अनुपम था। अभी विवाह हए कुछ ही महीने हुए थे। भावी सुलतान ने उसे देखा तो देखता ही रह गया। उसे शाही ठाठ-बाठ का घमण्ड था। उसके मन में यह विचार था कि मैं शेरशाह सूरी का पुत्र हूँ। मेरा एकछत्र साम्राज्य है। मैं चाहे जो कर सकता हूँ। उसने उस युवती पर पानदान में से दो पान के बीड़े उठाकर फेंक दिये। उस युवती ने यह देखकर लज्जा से सिर झुका लिया। मुह से वह कुछ भी बोल न सकी। उसका पति मोदी उसके सन्निकट ही बैठा था। वह भावी सुलतान के प्रस्तुत कुकृत्य को अपनी आँखों से देख रहा
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