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१२२ पंचामृत कि यह चोट मेरे द्वारा ही आपको लगी है ? मैंने आपके साथ बहुत ही अभद्रतापूर्ण व्यवहार किया। मुझ बाला के अपराध को क्षमा करें।
राजा गोविन्द ने मुस्कराते हुए कहा-क्षमाजैसी कोई बात ही नहीं है। मैं तो तुम्हारा उपकार मानता हूँ। यदि तुमने यह टोकरी न मारी होती तो मैं तुम्हारे महल में ही अनुचर के रूप में पड़ा रहता। यहाँ का राजा न बनता। और राजा न बनता तो तुम्हारे साथ विवाह भी नहीं होता।
नन्दिनी ने कहा-अन्त में उस बूढ़े ज्योतिषी की बात सच्ची ही निकली, जिसकी न मुझे स्वप्न में कल्पना थी, न आपको ही। पर जो होनहार होता है वह कभी टलता नहीं। इसे ही तो नियति कहते हैं।
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