________________
विधि का विधात १२१ गोविन्द से पूछा- आपके सिर पर यह निशान कैसे है ? लगता है किसी युद्ध के मैदान में आपको चोट लग गई है जिससे उसका चिन्ह अभी भी दिखाई दे रहा
गोविन्द ने मुस्कराते हुए कहा-यह चिन्ह विवाह का प्रतीक है। इसी चिन्ह ने मेरे भाग्य की परिवर्तित किया। मुझे एक अनुचर से राजा बनाया और यहाँ तक कि तुम्हारा पति भी बनाया।
नन्दिनी ने कहा-आप तो पहेलियाँ बुझा रहे हैं। क्यों नहीं स्पष्ट शब्दों में बताते—यह निशान कैसे हुआ ?
गोविन्द ने कहा-जरा ठहरो ! मैं अभी आता हूँ। गोविन्द एक कक्ष में गया और सन्दूक में से वह चांदी की टोकरी ले आया। टोकरी की ओर संकेत करते हुए पूछा--क्या इस टोकरी को पहचानती हो ? कहीं इसे देखा है तुमने ? - टोकरी को देखते ही नन्दिनी की सारी स्मृति उद्बुद्ध हो उठी-अरे, यह टोकरी तो मेरी ही है। मैं इसमें फूल चुना करती थी। क्या आप ही वह गोविन्द हैं जिसके सिर पर मैंने यह टोकरी मारी थी? नाथ ! मेरे अपराध को क्षमा करें। मुझे क्या पता था
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
___www.jainelibrary.org