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पंचामृत
कोई सपना देख रहा है । उसे यह विश्वास ही नहीं हो रहा था कि सत्य क्या है ?
सभी ने अपने नये राजा को हाथी पर बिठाया । शानदार जुलूस के रूप में वह राजमहल में ले जाया गया । विधिवत् उसका राज्याभिषेक किया गया । उसने विज्ञों को रखकर अध्ययन क्रिया । उसकी बुद्धि बहुत ही तीक्ष्ण थी । अतः उचित समय में एक श्रेष्ठ शासक के रूप में उसकी ख्याति चारों ओर फैल गई ।
गोविन्द को राजा बने हुए कई वर्ष व्यतीत हो गये थे । वह पूर्ण युवा हो चुका था । उसके अधिकारीगण योग्य दुलहिन की तलाश में थे । राजकुमारी नन्दिनी के पिता राजा चित्रदेव भी नन्दिनी के लिए योग्य वर की अन्वेषणा कर रहे थे। क्योंकि नन्दिनी अब काफी बड़ी हो चुकी थी । राजा चित्रदेव ने राजा गोविन्द के सम्बन्ध में सुना कि उसके जैसा श्रेष्ठ शासक उसकी पुत्री के लिए उपयुक्त है । अतः उसने राजा गोविन्द के पास विवाह का सन्देश भिजवाया । राजा गाविन्द ने विवाह की स्वीकृति प्रदान कर दी ।
नन्दिनी और गोविन्द का पाणिग्रहण उल्लास के क्षणों में सम्पन्न हुआ । देश भर में खूब खुशियाँ मनाई गई । एक दिन महारानी नन्दिनी ने अपने पति
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