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________________ ११२ पंचामृत राजा ने वृद्ध और वृद्धा दम्पति का बहुमान करते हुए कहा- जब तक इस देश में इस प्रकार के माता-पिता होंगे और इस प्रकार के पुत्र होंगे तब तक देश का बाल भी बाँका नहीं हो सकता। ये तीनों धन्य हैं । शतमन्यु को नरबलि के लिए तैयार किया गया । ज्यों ही उसे यज्ञ मण्डप में लाया गया, प्रसन्नता से उसका चेहरा गुलाब के फूल की तरह खिला था । वह सोच रहा था - आज का दिन धन्य है । मैं अपने देशनिवासियों के लिए अपना बलिदान दे रहा हूँ | मैं प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि हे प्रभु, मेरे देश - निवासी भयंकर दुष्काल से पीड़ित हैं । इनकी पीड़ा नष्ट हो । देश में सुकाल हो । अन्न-धन-जन-जल की अभिवृद्धि से जनजीवन सुखमय हो । । तल्लीनता से उसकी प्रार्थना चल रही थी । उसी समय एक दिव्य देव शक्ति प्रकट हुई। उसने कहा-ऐ बालक ! तू क्यों व्यर्थ ही अपने प्राण दे रहा है । तेरे प्राण बहुत ही कीमती हैं । देख, ये वृद्ध बूढ़े लोग अपने प्राणों का मोह नहीं छोड़ सके और तू पूर्णरूप से खिला भी नहीं है । फिर क्यों न्यौछावर हो रहा है । बालक ने कहा- हे दिव्यपुरुष ! मेरे से यह करुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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