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________________ बालक का बलिदान १११ मेरे पुत्र ने हजारों-लाखों प्राणियों की रक्षा के लिए अपना बलिदान स्वीकार किया है। यह मेरे लिए गौरव की बात है । जन-जन के हित के लिए अपने पुत्र को बलिदान देने के लिए में सहर्ष स्वीकृति प्रदान करता है । प्रधान अमात्य ने कहा- पुरुष का हृदय कठोर होता है । पुत्र पर पिता का ही नहीं किन्तु माँ का भी अधिकार है। जब तक इसकी माँ स्वीकृति न दे वहाँ तक इसका बलिदान स्वीकार नहीं किया जा सकता । महिलाओं की सभा से एक वृद्धा उठी और राजा के सन्निकट आकर राजा को अभिवादन किया और कहा - यह मेरा पुत्र है । इसने जो वीरतापूर्ण अपने विचार व्यक्त किये हैं उसे सुनकर मेरा हृदय बाँसों उछलने लगा है । कोई भी माँ अपने पुत्र को कायर देखना पसन्द नहीं करती । देश पर जब ऐसी भयंकर आपत्ति के बादल मंडरा रहे हैं उस समय मेरा लाड़ला वत्स अपना बलिदान देना चाहता है । यह मेरे लिए भी गौरव की बात है । इसका बलिदान देश को आबाद करने के लिए वरदान रूप से होगा । इसलिए मैं अपने प्यारे लाल को देश के लिए न्यौछावर होने की अनुमति देती हूँ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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