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बालक का बलिदान
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राजा ने प्रकृति के इस भीषण प्रकोप को देखा । उसका हृदय काँपने लगा । बारह बारह वर्ष हो गये हैं, एक बूंद भी पानी न गिरा । और पानी के अभाव में अन्न कहाँ से पैदा होता ? कोई न कोई उपाय करना चाहिए जिससे प्रजा की रक्षा हो सके । राजा ने अपने राज्य के सभी विद्वानों को निमन्त्रित किया और उनसे उपाय पूछा। विद्वानों ने कहा- राजन् ! नरमेध यज्ञ किया जाय तो वर्षा का देव प्रसन्न होगा और वर्षा से सारी पृथ्वी हरी-भरी हो जाएगी। किन्तु नरबलि होनी चाहिए प्रसन्नता से । बलात् की हुई नरबलि से देव सन्तुष्ट न होंगे ।
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राजा ने अपनी प्रजा की एक आम सभा बुलाई और कहा कि बारह वर्षों से हम कष्ट देख रहे हैं । वर्षारानी बिलकुल ही रूठी हुई है जिसके कारण कितनी भयंकर स्थिति पैदा हो गई है । इस भयंकर स्थिति से बचने के लिए एक ही उपाय है । और वह यह है कि नरमेध यज्ञ किया जाय । नरमेध के लिए एक ऐसा वीर चाहिए जो अपनी सहर्ष बलि दे सके ।
राजा की घोषणा ने सभी के मुँह पर ताले लगा दिये। सभी के सिर झुक गये । उसी समय एक बालक में खड़े होकर राजा से निवेदन किया- राजन् ! हजारों
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