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ভাল কা ভলিল
बात बहुत पुरानी है। एक बार भयंकर दुर्भिक्ष पड़ा। वर्षा न होने से जन-मानस व्यथित था। पशु भी घास के अभाव में छटपटा रहे थे। एक वर्ष के पश्चात् दूसरे वर्ष भी यही स्थिति रही। अपलक दृष्टि से लोग आकाश की ओर देख रहे थे कि कहीं बादल आयें और हजार-हजार धारा के रूप में बरस पड़ें जिससे सर्वत्र सुख और शान्ति की बंशी बजने लगे। वर्ष पर वर्ष बीतते चले जा रहे थे, किन्तु कहीं भी बादलों का नाम नहीं था। सूर्य की चिलचिलाती धूप आग उगल रही थी। भयंकर गर्मी और पानी के अभाव में प्राणी पटापट मर रहे थे। भीष्म ग्रीष्म की सनसनाती लूओं से प्राणी झुलस रहे थे। काल का विकराल अजगर प्राणीजगत् को निगलने के लिए मुह बाए पड़ा था। माताएँ अपने प्यारे लालों को भूखे-प्यासे छटपटाते हुए देख रही थीं, पर वे कहाँ से लातीं अपने प्यारे लालों के लिए अन्न और पानी। वे स्वयं भी कई दिनों से भूखीप्यासी थीं।
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