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लाख नहीं, साख १०७ लिया। मैं आपके भय से भयभीत हो गया और दुकान में रेशमी वस्त्र होने पर भा मैंने स्पष्ट इनकारी कर दी। उस वचन को सत्य सिद्ध करने के लिए मैंने रात्रि में ही सारे रेशमी वस्त्रों को जला दिया। अतः इनको दण्ड न दिया जाय। गलती मेरी है, इनकी नहीं।
राजा श्रेष्ठी की सत्यप्रियता से अत्यधिक प्रभावित हुआ। उसने पूछा-बताओ, माल कितना था जो तुमने जलाया ? सेठ ने कहा-एक लाख पच्चीस हजार का। राजा ने प्रसन्न होकर एक लाख पच्चीस हजार रुपये अपने राजकोष से उसे दे दिये और कहा—मुझे अपने राज्य में ऐसे सच्चे व्यापारी की आवश्यकता है। - व्यापारी घर आया। उसने पुत्रों से कहासाख रहने पर यह सवा लाख रुपये पुनः आ गये। इसलिए लाख की नहीं, साख की आवश्यकता है।
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