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________________ १५ लाख नहीं, साख कपड़े का एक बहुत बड़ा व्यापारी था । प्रामाणिकता और नीति से वह व्यापार करता था । ग्राहकों के साथ उसका बहुत ही मधुर व्यवहार था जिससे वह नगर का लोकप्रिय व्यापारी बन गया । अन्य वस्तुओं के साथ वह रेशम के बहुमूल्य वस्त्र भी रखता था । एक दिन राजा को रेशम के बहुमूल्य वस्त्रों की आवश्यकता हुई। उसने अपने अनुचर भेजकर व्यापारी को बुलवाया । व्यापारी एकाएक बुलाने के कारण घबरा गया । राजा ने उसने पूछा- बताओ, तुम्हारी दूकान में रेशम के वस्त्र हैं ? व्यापारी समझ ही नहीं सका कि वह क्या उत्तर दे ? अकस्मात् उसके मुँह से निकल गया - महाराज ! मेरी दूकान में रेशम के वस्त्र नहीं हैं । । वह लौटकर जब दूकान पर आया तो उसे ध्यान आया कि मैंने भय के कारण राजा के सामने झूठ बोल दिया है । वह मन ही मन घबराने लगा । राजा के चापलूस अनुचरों ने कहा- राजन् ! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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