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स्वप्न-फला १०१ राजा ने कहा-भगवन् ! बारहवें एवं तेरहवें स्वप्नों में मैंने देखा-तुम्बे जो पानी पर तैरते हैं, वे पानी में डूब रहे हैं और जो भारी भरकम वस्तुएँ हैं वे तैर रही हैं।
बुद्ध ने कहा- भविष्य में जो क्रियानिष्ठ, चारित्रनिष्ठ, सत्यवादी सन्त होंगे उनकी किसी भी प्रकार की पूछ नहीं होगी। और जो पाखण्डी, दुराचारी तथा ढोंगी होंगे, वे अपने मायाचार से सर्वत्र आदर प्राप्त करेंगे। उनकी बातें लोग सुनना पसन्द करेंगे। धर्म के नाम पर पाखण्ड पनपेगा । शालीनता के नाम पर अश्लीलता अपना साम्राज्य जमाएगी। पापी व्यक्तियों के हाथों में शासन-सूत्र होगा, उन्हें सम्मान मिलेगा। और सभ्य व्यक्तियों को कई बार कारागृहों की हवा खानी पड़ेगी।
राजा ने निवेदन किया-भगवन् ! मैंने चौदहवें स्वप्न में देखा छोटे-छोटे मेंढक विराटकाय काले नागों को निगल रहे हैं।
बुद्ध ने कहा-राजन् ! यह स्वप्न भी भविष्य का ही सूचक है। मेंढक की तरह जो घर में बाल-बच्चे और स्त्री होंगी वे घरमालिक जो सर्प की तरह होगा, उसे भी निगल जायँगी । अर्थात् घरमालिक का
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