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स्वप्न-फल
कोशलनरेश अपने राजप्रासाद में सोये हुए थे। रात्रि का उत्तरार्द्ध था। उस समय उन्हें गहरी निद्रा नहीं आ रही थी। उन्होंने उस अर्धजागृत अवस्था में सोलह स्वप्न देखे । स्वप्न देखने के पश्चात् वे उठ बैठे। मन में नाना विचार चक्कर लगाने लगे। उनका शरीर भय से काँप उठा। स्वप्नशास्त्र के जानकार न होने से मन में विविध प्रकार के संकल्प-विकल्प उद्बुद्ध हो रहे थे कि इन स्वप्नों का क्या फल होगा ? शेष रात्रि चिन्ता में ही पूर्ण हुई।
. प्रातःकाल ब्राह्मणों ने राजा को आशीर्वचन देते हुए कहा-राजन् ! आपका चेहरा आज मुरझाया हुआ क्यों है ? राजा ने कहा-आज रात्रि में मैंने सोलह स्वप्न देखे हैं। मुझे नहीं पता उन स्वप्नों का क्या फल होगा? आप विज्ञगण जरा स्वप्नों पर चिन्तन कर मुझे बतायें कि ये स्वप्न लाभप्रद हैं या हानिकर हैं।
.. पण्डितों ने चिन्तन के पश्चात् कहा-राजन् ! ये स्वप्न बड़े ही विचित्र हैं। लगता है इन स्वप्नों का
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