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६० पंचामृत है। आपके लिए तो कंचन और कामिनी दोनों ही त्याज्य हैं। आप तो उसे मिट्टी के ढेले के समान समझते हैं। इसीलिए बहुमूल्य आभूषणों की ये दो मंजूषा जिनमें बहुमूल्य जवाहरात हैं, आपके यहाँ रखना चाहती हूँ ताकि पुनः तीर्थयात्रा से लौटने पर मुझे प्राप्त हो सकें। ____साधु मणिप्रभ ने कहा-इन आभूषणों की मंजूषाओं को रखना मेरे लिए कैसे सम्भव होगा? तथापि तुम्हारी भक्ति से उत्प्रेरित होकर मैं यहाँ रखने की तुमको अनुमति देता हूँ। जब भी तीर्थयात्रा से लौटोगी तब ये तुमको सुरक्षित मिल जाएगी।
मणिप्रभ और कामलता वेश्या की बात चल ही रही थी, उसी समय श्रेष्ठी धनदत्त वहाँ आ पहुँचा। उसने आते ही आवाज लगाई कि यह साधु पाखण्डी है, ढोंगी है, इसने मेरे दस रत्न हड़प लिए हैं।
वेश्या ने बाबा से पूछा-बाबाजी ! क्या बात है ? यह यों क्यों चिल्ला रहा है ?
साधु ने कहा-इसने मेरे पास रत्न रखे थे पाँच रत्न और यह दस रत्न मांग रहा है । देखो कितना झूठ बोलता है । अब मैं दस रत्न कैसे दे सकता हूँ?
वेश्या ने कहा-बाबाजी ! आप इसके पाँच रत्न दे दीजिए। क्योंकि जिस दिन यह रत्न लेकर आया था
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