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________________ लालच बुरी बला τ जीवनभर नहीं भूलूंगा । साथ हीं तुम्हें योग्य पुरस्कार देकर तुम्हारा सम्मान करूँगा । कामलता ने कहा- उस साधुवेषधारी को मैं ऐसा पाठ पढ़ाऊँगी कि वह भी याद करे । कामलता ने धनदत्त को कहा- मेरे आश्रम में पहुँचने के एक घण्टे के पश्चात् आश्रम में आना। और उस साधु से रत्न माँगना । वेश्या ने सोलह श्रृंगार सजाये । बहुमूल्य आभूषण धारण किये और दो पेटियाँ अपनी दासियों के सिर पर रखवाकर मणिप्रभ के आश्रम में पहुँची । मणिप्रभ वेश्या को आश्रम में आयी हुई देखकर विस्मित हुआ । वेश्या ने मणिप्रभ को नमस्कार किया और बतायागुरुदेव ! आप तो महान् पवित्र आत्मा है । जीवनभर साधना में लगे रहे हैं । पर मैं पापात्मा हूँ । जीवन भर मैंने पाप ही पाप किये हैं । राजा-महाराजा लोगों से करोड़ों की सम्पत्ति प्राप्त की है । अब विचार हुआ कि उस पाप से मुक्त होने के लिए तीर्थयात्रा करूँ | तीर्थयात्रा के लिए जाने की सोच रही हूँ । पर यह विराट् सम्पत्ति घर में रखकर जाऊँ तो कभी न कभी खतरा हो सकता है । बहुत कुछ सोचा तभी मेरा ध्यान आपकी ओर केन्द्रित हुआ । आप जैसी पवित्र आत्मा संसार में दुर्लभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003186
Book TitlePanchamrut
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1979
Total Pages170
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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