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________________ २८ तुम महान् हो लोहा अग्नि में पड़कर स्वयं अग्निमय बन जाता है । सोना अग्नि में पड़कर शुद्ध हो जाता है । पर, हीरा अग्नि में पड़कर भी अपने मूल स्वभाव में रहता है, उस पर अग्नि का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । कुछ मनुष्य लोहे के समान कष्ट आने पर ऐसा दिखाते हैं जैसे समूचा जीवन ही एक कष्ट गाथा बन गई हो ? कुछ मनुष्य सोने के समान कष्ट पाकर अधिक तेजस्वी प्रतीत होते हैं, जैसे कष्ट वरदान बनकर आये हों । कुछ मनुष्य हीरे के समान दुःखों की भावना एवं कष्टों की तपन से सर्वथा अस्पृष्ट रहते हैं, उन पर सुख-दुःख का कोई प्रभाव नहीं पड़ता । तथागत के जीवन का प्रसंग है । बुद्ध एक बार किसी अनार्य प्रदेश में भ्रमण कर रहे थे । वहाँ के लोगों ने बुद्ध को बड़ी क्रूर यातनाएँ दीं। इस शरीर कष्ट को देखकर आनंद विचलित हो उठे । तथागत से अनुरोध किया - "प्रभो ! यह गांव छोड़ दीजिए ।" Jain Education International ७० For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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