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करे तो शायद वह मांसभक्षण की सिहर उठे ।
अनुश्र ुत श्रतियाँ
कल्पना से ही
जैन ग्रन्थों की एक प्राचीन आख्यायिका है । एक बार मगध नरेश श्रेणिक की सभा में कुछ मांस- लोलुप सामंतों ने मांस भक्षण के शारीरिक एवं आर्थिक लाभ बताए - " मांस जैसा सस्ता और पौष्टिक खाद्य दूसरा नहीं है ।"
महामात्य अभय ने कहा- "यह आप लोगों का भ्रम है, मांस जैसा मँहगा पदार्थ और कुछ है ही नहीं ।" महाराज ने बात का प्रमाण चाहा । अमात्य ने उसके लिए समय की मांग की ।
रात के द्वितीय प्रहर में जब संसार निद्रा लीन था, महामात्य घबराए हुए से एक सामंत के द्वार पर पहुंचे । "भाई, अपने पर बड़ी विपत्ति आ पड़ी है, महाराज सहसा भयंकर रोग से ग्रस्त हो गए हैं, और वैद्यों का कहना है, दवा के साथ किसी मनुष्य के सिर्फ दो तोला ! स्वामी की प्राण रक्षा के राज-भक्ति का परिचय आप देंगे इसी विश्वास से मैं स्वयं आपके द्वार पर आया हूँ ।'
कलेजे का
मांस चाहिए, लिए अपनी
सामंत के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं । “कलेजे का माँस !" कल्पना करते ही उसकी धमनियों में रक्त जम गया। उसने हाथ जोड़े - "महामात्य ! आप बुद्धिनिधान है, मुझ पर दया कीजिए, आप कहीं से भी किसो मनुष्य का मांस खरीद सकते हैं. उसके लिए हजार - लाख जितनी
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