________________
| 2
२१
क्रोध का स्वरूप
भीषण निदाघ का प्रतीकार है - सघन जल वर्षा ? उद्दीप्त क्रोध का प्रतीकार है - मधुर क्षमा ! भगवान महावीर ने क्रोध का एकमात्र उपचार बताया है
१
उवसमेण हणे कोहं -
क्रोध को क्षमा से ही जीता जा सकता है । और यही बात तथागत ने कही है
अक्कोधेन जिने कोध
अक्रोध से क्रोध को जीतो !
घी की आहुति से अग्नि अधिक प्रदीप्त होती है, वैसे ही क्रोध से क्रोध बढ़ता है । जल से अग्नि शांत होती है, क्षमा से क्रोध नष्ट हो जाता है ।
जैन पुराणों की आख्यायिका है। एक बार वासुदेव श्री कृष्ण, बलदेवजी एवं सात्यकि वन भ्रमण को गये तो
१. दशवै० ८।३६ ।
Jain Education International
२. धम्मपद १७|३ For Private &sonal Use Only
www.jainelibrary.org