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अनुश्र त तियाँ लेकिन इसे तो समुद्र ने घेर रखा है, इसलिए पृथ्वी से तो समुद्र बड़ा है। और समुद्र को तो अगस्त्य मुनि पी गये थे, अतः अगस्त्य समुद्र से भी बड़े हैं। किंतु इस अनन्त आकाश में अगस्त्य का क्या स्थान है ? वह तो एक जुगनू की भांति चमक रहा है, उससे तो बड़ा आकाश है।
भगवान प्रश्न को घुमाते हुए आगे ले गये। नारद का धैर्य विचलित होने लगा-फिर क्या आवाश ही सबसे बड़ा है ?
देवर्षि ! आकाश को भी तो विष्णु के वामन अवतार ने एक ही पग में नाप लिया था, अतः आकाश से भी महान् है भगवान् ! किंतु उन भगवान को भी तुम (भक्त) अपने नन्हे से हृदय में अवरुद्ध किए बैठे हो, अतः देवर्षि ! इस पृथ्वी पर तुम (भक्त) से महान् और कोई नहीं है, भक्त ही सबसे महान है।"
विष्णु पुराण १८।१४
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