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बुराई
१५
एक लोकानुश्र ति है-सृष्टि के प्रारंभ में गाय और घोड़े में बड़ी मैत्री थी। दोनों जंगल में साथ-साथ चरते और बड़े आनन्द से जीवन गुजारते। एक दिने घोड़ा गाय से रूठ गया । गाय को परेशान करने का कुविचार उसके मन में जगा । वह खोजता-खोजता मनुष्य के पास पहुँचा। मनुष्य को कहा-"देखो, तुम्हें एक ऐसा जानवर बताऊ, जिसके स्तनों में दूध भरा है, उसे घर में खूटे से बांध दो और रोज दूध पीओ।"
मनुष्य के मुह में पानी छूट आया, पर उसके सामने समस्या थी, इतनी दूर जंगल में कैसे जाये ? बीच में कितने पहाड़, नदी, नाले और संकड़े रास्ते, और वियावान जंगल !"
घोड़े ने कहा- 'घबराओ मत ! मेरी पीठ पर बैठ जाओ, अभी पवन वेग से तुम्हें वहां ले चलता हूँ।" आदमी घोड़े की पीठ पर बैठा, और बात की बात में बहुत दूर जंगल में पहुंच गया। घोड़े की आनन्दप्रद सवारी पर उसकी गीध दृष्टि ललचा गई।
घोड़े ने गाय की ओर संकेत किया, आदमी ने गाय को डोरी से बांध लिया। वापस जाने की समस्या सामने आई तो घोड़ा फिर उसे घर तक पहुंचाने आया। आदमी ने एक खटे से गाय को बांधा और दूसरे खटे से घोड़े को। घोड़ा हिनहिनाया-"मुझे छुट्टी दो भाई !"
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