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बुराई
बुराई, ईर्ष्या, मन के अंगारे हैं। अंगारा दूसरे को जलाने से पहले अपने आश्रय को ही जलाता है, ईर्ष्या और बुराई भी दूसरों का अहित करने से पहले अपने उत्पादक- ईर्ष्यालु व अहितचिन्तक का ही नाश करते हैं। ___ जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है, वह स्वयं भी उस गड्ढे में गिर जाता है । अग्नि को बुलावा देने वाला काठ क्या यह नहीं सोचता कि वह अग्नि दूसरों के साथ तुझे भी भस्मसात् कर डालेगी ? ।
भगवान महावीर का एक वचन है-- "सयमेव कडेहि गाहई" १-पापी अपने किए हुए से स्वयं ही ग्रस लिया जाता है। दूसरों की बुराई एवं ईर्ष्या के सम्बन्ध में यह शतप्रतिशत सही है।
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सूत्रकृतांग १।२।१।४
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