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सब से बड़ा दान
२५१ द्वाविमौ पुरुषौ राजन् ! स्वर्गस्योपरि तिष्ठतः । प्रभुश्च क्षमया युक्तो दरिद्रश्च प्रदानवान् ।'
"राजन् ! संसार में ये दो प्रकार के पुरुष स्वर्ग से भी ऊपर स्थान पाते हैं--एक शक्तिशाली होने पर भी क्षमा करने वाला और दूसरा निर्धन होने पर भी दान देने वाला।
एक बार पाटन के महामंत्री उदयन के पुत्र बाहड़ ने शत्रु जय का जीर्णोद्धार करवाने का निश्चय किया। जनता की प्रार्थना पर बाहड़ ने-प्रत्येक गृहस्थ की श्रद्धा का अंश धन रूप में ग्रहण करने की स्वीकृति दी। सभी ने यथाशक्ति धन दिया।
जीर्णोद्धार के बाद महामंत्री ने दान दाताओं की नामावली घोषित की तो सब से ऊपर भीम नामक एक मजदूर का नाम था। जिसने सहायता दी थी-"केवल सात पैसे।"
जनता का आश्चर्य और जिज्ञासा देखकर मंत्रोवर ने सब को समाधान देते हुए बताया-“बंधुओ ! आपने और मैंने जो हजारों लाखों रुपये की सहायता दी है, वह अपने धन का एक भाग ही दिया है। किंतु भीम ने जो सात पैसे दिए हैं वह उसके जीवन की अब तक की पूजी है,
१. महाभारत उद्योग० ३३३५८
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