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________________ मोटी चादर २४५ अपना सुख देकर खरीद लेती है, दूसरों के दुःख को नष्ट करने पर सर्वतोभोवन तुल जाती है, इसलिए वह करुणा है। जैन जगत के ज्योतिर्मय नक्षत्र आचार्य हेमचन्द्र के जीवन का एक मधुर प्रसंग है। एक बार आचार्य जन पद विहार करते हुए गुजरात की राजधानी पाटन में प्रवेश कर रहे थे । सम्राट कुमार पाल आचार्य के वरद आशीर्वाद से उसो वर्ष सिंहासन पर बैठे थे, और राज्यारोहण के बाद आचार्य का यह प्रथम प्रवेश था-परम भक्त सम्राट की राजधानी में। - आचार्य एक छोटे से गांव में ठहरे थे। वहां एक गरीब विधवा बहुत समय से आचार्य श्री के दर्शनों की अपलक प्रतीक्षा लिए बैठी थी-जैसे मीरा गिरधर श्याम की ! आचार्यश्री के दर्शनों से उसका रोम-रोम पुलक उठा, भक्ति की पावनी गंगा में उसने कल्मष धो डाले। और श्रद्धा-विह्वल हृदय से एक मोटी चादर हाथ में लिए प्रार्थना करने लगी- "गुरुदेव ! मैंने अपने शरीर से महनत करके स्वयं सूत काता और यह चादर तैयार की है, मेरी वर्षों से यह भावना थी कि यह चादर मैं आप जैसे महान संत को भिक्षा में दूँ ! प्रभो ! क्या मेरे हृदय की अमर साध पूरी होगी ?' आचार्यश्री ने करुणा-स्निग्ध हाथ बढ़ाए,बहन ने श्रद्धा विभोर होकर चादर की भिक्षा दी। हर्ष के वेग से श्रद्धा Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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