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जीवन स्फूर्तियाँ
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एक बार वे घर से दरबार में जा रहे थे, रास्ते में शीघ्रतावश लघुनीत करने बैठ गए। दरबार के पहरेदार ने कोई ऐर - गैर आदमी समझकर एक चपत लगाकर रास्ते में लघुनीत करने के लिए डांट दिया ।
बनारसीदास जी ने चुपचाप सिपाही की ओर देखा, उसके नम्बर नोट किए और आगे चल दिए । दरबार में पहुंचकर उन्होंने अमुक नंबर के सिपाही को बुलाने के लिए महाराज से निवेदन किया ।
सिपाही दरबार में आया । बनारसीदास जी को उच्च आसन पर बैठे देखकर उसकी सिटीपिटीगुम हो गई। सोचा - "यह तो वही आदमी है जिसे अभी-अभी मैंने डांट कर तमाचा मारा था । अब क्या होगा ?"
" सिपाही ! डरो मत! तुम्हें कितना वेतन मिलता है ? - तभी बनारसीदास जी ने आश्वासन के स्वर में पूछा ।
" जी ! दस रुपये !" कांपते हुए सिपाही ने उत्तर दिया ।
"महाराज ! आज से इसके वेतन में दो रुपए और बढ़ाने की कृपा करें !" बनारसीदास जी ने महाराज से निवेदन किया ।
महाराज स्मितपूर्वक प्रश्न भरी नजर से बनारसी दास जी की ओर देखने लगे । बनारसीदास जी ने स्थिति
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