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आधुनिक जापान के कालिदास महाकवि नागोची ने एक जगह लिखा है- “स्वर्ग के सर्वानन्द के बीच भी भगवान ने जब मुझे परेशान देखा तो स्नेहार्द्र भाव से पूछा - "इतने उदास क्यों हो, मानव ! क्या स्वर्ग में किसी बात का अभाव है ?"
"हां, प्रभो ! मैं अपनी एक ऐसी निधि पृथ्वी पर भूल आया हूँ, जिसके सामने स्वर्ग के अनन्त सुख बिल्कुल बेस्वाद हैं ।"
" क्या है वह निधि" - विधाता ने भुंझला कर पूछा । "अब तक संजोयी हुई कुछ श्र तियाँ और कुछ अनुभूतियां !" - मैंने कहा । अनुश्रुतियों में केवल मानव मस्तिष्क की उच्च मधुर कल्पना का चमत्कार ही नहीं, किन्तु बहुमूल्य अनुभवों का एसा रसायन भी है, जिनके स्पर्श से जीवन का लोहा स्वर्ण बन सकता है ।
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