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सत्संग का प्रभाव
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इसी शाश्वत - पारिणामिक मनोविज्ञान का सिद्धान्त आचार्य शय्यंभव ने यों व्यक्त किया है—
कुज्जा साहूहिं संथवं '
सत्पुरुषों का ही संसर्ग करना चाहिए। वही मानव को श्रेष्ठता की सीढ़ियों पर अग्रसर कर महामानव की कोटि में पहुँचाता है ।
स्वामी विवेकानंद के जीवन का एक मधुर प्रसंग श्रीमती केलमे ने ( आत्म कथा में ) उट्ट कित किया है । स्वामी विवेकानंद एक बार मिस्र के काहिरा शहर में घूमते हुए रास्ता भूलगये थे । भटकते-भटकते वे वेश्याओं के गंदे मोहल्ले में पहुच गये । वेश्याओं ने ग्राहक समझ, संकेत से स्वामीजी को ऊपर बुला लिया। मानव के अन्तर में अनन्त पवित्र ऐश्वर्य का दर्शन करने वाले स्वामी जी निस्संकोच ऊपर पहु ंच गये ।
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स्वामीजी की तेजोद्दीप्त आंखों में करुणा छलक उठी । रुद्ध कंठ से अपने साथियों को सम्बोधित करते हुए स्वामी जी ने कहा - "ये ईश्वर की हतभाग्य संतानें हैं । शैतान की उपासना में अपने अन्तर्यामी भगवान को भूल गई हैं ।"
स्वामी जी की करुणा - विह्वल भाव मुद्रा ने वेश्याओं के अन्तःकरण की अन्धतमिस्रा में दिव्यता की मंजुल किरण जागृत कर दी ।
१ दशर्वकालिक ८५३
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