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सत्संग का प्रभाव
सीप के मुह में गिरी हुई ओस की बूद-मोती बन जाती है, कमल के पत्तों पर टिकी एक शबनम-सूर्य की किरणों में हीरक कणी-सी चमक उठती है-वैसे ही सत्पुरुष के संग में रहा हुआ एक दुर्जन भी सज्जनता के अलंकार से विभूषित हो उठता है।
जैननीति के मर्मज्ञ सूत्र-शिल्पी आचार्य सोमदेव सूरि ने कहा है-"महद्भिः सुप्रतिष्ठितोऽश्माऽपि भवति देवता-""
महान पुरुषों के हाथों से प्रतिष्ठित होकर पत्थर भी देवत्व को प्राप्त हो जाता है। हवा के परों पर बैठा लघु रजकण क्या आकाश में नहीं चढ़ जाता? संत कवि तुलसी दासजी की भाषा में
गगन चढहि रज पवन प्रसंगा।
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