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जीवन स्फूर्तियाँ फिर मनुष्य किससे घृणा करता है और किस बात पर अहंकार ?
किंतु लगता है, शास्त्रों का यह तत्त्वज्ञान, महापुरुषों का सद बोध मनुष्य ने केवल शब्दों पर थमा रखा है, आज तक उसके हृदय में नहीं उतरा है। काले-गोरे का भेद-भाव, ऊंच-नीच का अहंकार आज भी उसकी नसों में बह रहा है। हां, जब कभी उसके इस मिथ्या अहं पर कोई चोट पड़ती है तो उसे एक बार तिल-मिलाकर अपने भीतर देखने को विवश अवश्य होना पड़ता है।
ब्रिटेन में एक प्रीतिभोज हो रहा था। बड़े-बड़े अंग्रेज उसमें थे, डा० राधाकृष्णन् भी अपने साथियों के साथ निमंत्रित थे। उनके साथियों में कुछ मद्रासी भी थे।
एक शेखीबाज अंग्रेज ने राधाकृष्णन् की ओर देख कर कहा-"अंग्रेज जाति ईश्वर की सबसे प्यारी जाति है, हमारा निर्माण ईश्वर ने बड़े यत्न व स्नेह से किया है, तभी तो हम इतने गोरे हैं।"
अंग्रेज की गर्वोक्ति पर डा० राधाकृष्णन मुस्कराये, और फिर उपस्थित मित्रों को सम्बोधित करते हुए बोले-मित्रो ! एक बार भगवान को रोटी पकाने की इच्छा हुई। वे रोटी सेकने बैठे, पर रोटी कम सिकी, कच्ची रह गई ! भगवान ने दूसरी रोटी बनाई, उसे सैकने बैठे तो वह कछ ज्यादा सिक गई। भगवान ने
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