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पुरुष का आभूषण
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अपनी पुरानी साड़ी पहन वे पैदल ही घर लौटी, द्वार खुला था । क्षमा मांगने ज्योंही वे पती के चरण छूने लगी, शास्त्री जी बोले - "ये बहुमूल्य वस्त्र आभूषण या तो राजपुरुषों को शोभा देते हैं, या मूर्खों को, जो इनसे अपनी अज्ञता छिपाने का प्रयत्न करते हैं सत्पुरुषों का आभूषण तो सादगी, शील और सदाचार है ।"
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