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जीवन स्फूर्तियाँ जिसके पास शील के आभूषण हैं-उसे अन्य आभूषणों की कभी कोई अपेक्षा नहीं रहती। शीलवान का जीवन उन्नत एवं मन गौरव से परिपूर्ण रहता है।
श्रीराम शास्त्री, पेशवा माधवराव जी के गुरु, मंत्री एवं प्रधान न्यायाधीश के पद पर आसीन होकर भी अत्यंत सादगी एवं सीधे-सादे ढंग से रहते थे।
एक बार शास्त्रीजी की पत्नी किसी पर्वके उपलक्ष्य में राजमहल में गई। रानी ने देखा-"राजगुरु की पत्नी के तन पर आभूषण के नाम पर सोना क्या, चाँदी का एक तार भी नहीं। रानी को लगा,लोग इसमें राजकुल की कृपणता' का दर्शन करेंगे, अतः उसने गुरु पत्नी को बहुमूल्य वस्त्रों एवं आभूषणों से अलंकृत कर दिया।
गुरु पत्नी पालकी में बैठ कर घर पहुँची, तो द्वार बंद था, कहारों ने आवाज लगाई, द्वार खुला और फिर झट से बंद हो गया। फिर आवाज आई-"शास्त्रीजी ! आपकी धर्म पत्नी आई हैं द्वार खोलिए !"
_ 'बहमूल्य वस्त्राभूषणों से सजी ये और कोई देवी है, मेरी ब्राह्मणी ऐसे वस्त्र और गहने नहीं पहन सकती। तुम लोग भूल से मेरे द्वार पर आये हो।"भीतर से आवाज आई। पत्नी ने पति का आशय समझ लिया, वे पुनः राजमहलों की ओर लौटी और वस्त्र आभूषण उतारकर महारानी को सौंपे और कहा-"इन आभू षणों ने तो मेरे लिए घर का द्वार भी बंद कर दिया है।"
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