________________
१५२
अनुश्रुत श्रु तियाँ "मैं आज से अपना निमंत्रण वापस लेता हूँ।"
गांधीजी मधुर मुस्कान के साथ पादरी की आँखों में झांकने लगे। पादरी झुझला कर बोला-"मिस्टर गांधी ! मैं हिन्दुस्तान के कल्याण के लिए तुम्हें ईसाई बनाना चाहता था, पर तुम तो मेरे बच्चों पर ही हमला बोल रहे हो, यह मुझ से बर्दाश्त नहीं हो सकता।"
गांधी जी पादरी की मूर्खता पर मन-ही-मन हंस पड़े, वह वाणा से अपना धर्म फैलाना चाहता था, मगर गांधी अपने जीवन से धर्म का पाठ सिखा रहा था। .
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org