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गुरु मंत्र
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न सुख स्थायी है, और न दुःख बस यही विचार जीवन मे समता, साहस और धैर्य का द्वार खोलता है ।
एक प्राचीन कथा है। एक राजा ने आदमकद शीशे के समक्ष अपना झुर्रियों से विवर्ण चेहरा और पांडुर केश देखे तो उसका मन विरक्त हो गया। अपने पुत्र को राज्य भार सौंपकर स्वयं आत्म-साधना की पगडंडियों पर चल पड़ा ।
राजकुमार अभी अपरिपक्व था, उसने राज्य का गुरुतर भार कंधों पर ले तो लिया, पर उसे सफलता - पूर्वक कैसे निभाये, इसकी शिक्षा लेने वह अपने विद्यागुरु के चरणों में गया ।
गुरु ने आशीर्वाद देते हुए कहा - " युवराज ! तुमने जो अध्ययन, अनुशीलन करके ज्ञान प्राप्त किया है, अब उसकी परीक्षा है। धैर्य एवं विवेक के साथ इस परीक्षा में उत्तीर्ण होना है ।"
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राजकुमार - "गुरुदेव ! कोई विशिष्ट गुरु मंत्र दीजिए ताकि इस महान् उत्तरदायित्वको ठीक ढंगसे निभासकू ।' गुरु - " राजकुमार ! एक मंत्र है - 'इदमपिगमिष्यति' - यह भी चला जायेगा, इस मंत्र को अपनो मुद्रिका में उट्ठकित करवा लीजिए, और जब भी बल, ऐश्वर्य एवं योग्यता का नशा मन पर छाये तब इस मंत्र को सार्थ चितन
करते जाइए - यह क्षणिक है, यह भी चला जायेगा । और जब कभी निराशा एवं दीनता से मन व्याकुल हो
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