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________________ १७ अनाती जाती है, ज्ञान और चरित्र की चेतना जागृत करती जाती है। ___ लगता है मधुरिमा के साथ वैचारिक जागृति और चारित्रिक चेतना लेकर ही श्री देवेन्द्र मुनि ने इन कथाओं की भव्य-शब्द देह में अर्थ की आत्मा को रूपायित कर दिया है । कथा-संस्मरण लेखन की अनेक नूतन-शैलियों में प्रस्तुत-शैली एक नवीन सर्जना है, जिसमें कथासूत्र की उद्बोधकता को उत्तेजित करने वाले संक्षिप्त विचार सूत्र भी कथाओं के पूर्व आमुख के रूप में अंकित किए गए हैं, और वे भी विचारजगत के बहुश्रुत मनीषियों के विचार कण के रूप में । इससे विचारों की उत्तेजकता में मधुरिमा घुल गई है, और कथाओं की मधुरिमा में एक अपूर्व उत्तेजकता आगई है, आशा है कथालेखन की यह शैली प्रस्तुत में अपनी उपादेयता के साथ-साथ मौलिकता का मापदण्ड भी स्थापित करेगी। श्री देवेन्द्र मुनि जी वर्तमान जैनजगत के एक उदीयमान साहित्यकार हैं । साहित्य लेखन उनका व्यवसाय नहीं, रुचि है । साहित्य लेखन का प्रेरक तत्त्व यशःकामना नहीं, किंतु आत्मतृप्ति है । इस कारण उनके साहित्य में लोक रंजन के साथ लोकोपकारिता का तत्त्व भी दूध में स्वाद के साथ पौष्टिकता की भांति अन्तहित है । उनकी लेखिनी साहित्य की विविध विधाओं को स्पर्श कर रही है । शोधपूर्ण ग्रन्थों के प्रणयन के साथ-साथ विचारपूर्ण जीवन-स्पर्शी साहित्य की सर्जना भी वे कर रहे हैं और अपनी विविध-विषयावगाहिनी प्रतिभा का अमृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003185
Book TitleKhilti Kaliya Muskurate Ful
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDevendramuni
PublisherTarak Guru Jain Granthalay
Publication Year1970
Total Pages288
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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