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कहानी, वह भले ही अपनी हो, या अपने संवेदन में परारोपित हो,-एक रसमय तरंग है, एक मधुर शीतल हिलोर है। उस हिलोर की उछाल में शुष्क एवं नीरस हृदय भी रसमय बन जाते हैं । उस रसानुभूति के वेग में कभी-कभी आत्मानुभूति की एक दिव्य किरण भी चमक आती है, जो मन की तमसिल भूमि को आलोकमय बना देती है ।
विश्व कथासाहित्य का अमरशिल्पी ईसप सिर्फ अपनी कहानियों की मधुमयता के कारण ही एक कुरूप कुबड़ा गुलाम होकर भी यूनान के तत्कालीन लोक-जीवन का मार्ग द्रष्टा बन गया। गुलामों के प्रसिद्ध बाजार संमोस से जब दार्शनिक जान्थुस ने ईसप को खरीदा, और अपने घर ले गया तो उसकी पत्नी दार्शनिक पर उबल पड़ी---"इससे तो अच्छा था, कोई जानवर खरीद लाते।" किंतु ईसप ने उसी दुष्ट स्वभाव की नारी को अपनी कहानियां सुना-सुना कर कुछ ही दिनों में 'देवी' रूप में परिवर्तित कर दिया।
और प्रसिद्ध है विश्व के महान नीति-कथासर्जक आचार्य विष्णुशर्मा का पंचतंत्र ! जिसकी उद्भावना एक मन्दबुद्धि मूर्ख राजकुमार के लिए की गई । और जिन्हें सुनते-सुनते छह महीनों में प्रज्ञा को स्फुरणा, नोति और विवेक का आलोक पाकर राजकुमार एक श्रेष्ठ लोक प्रशासक के रूप में चमक उठा।
सचमुच कथाओं में केवल मधुमक्खी के डंक की मधुमयता ही नहीं होती, किंतु ज्ञान और अनुभव की एक अद्भुत छटपटाहट भी होती है, जो मधुरिमा के साथ-साथ मानव-मानस को प्रबुद्ध
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