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अनुश्रुत श्रुतियाँ
बक ने हँस कर कहा - "नहीं ! महाराज, आपको क्या पता इस जल प्रवाह में कितने क्षुद्र दीन जीव तैरते चले जा रहे हैं, किसी को कोई कष्ट न हो जाय, इसी - लिए धीरे-धीरे चल रहा हूँ ।"
राम बगुले के उत्तर से आश्चर्य मुग्ध हो उठे, तभी लक्ष्मण उनके निकट आ पहुंचे और पूछा - "महाराज ! आप भाव विभोर से हुए जल प्रवाह में क्या देख रहैं हैं ?”
राम ने कहा
" पश्य लक्ष्मण पम्पायां बकः परमधार्मिकः । शनैः शनैः पदं धत्त जीवानां वधशंकया || लक्ष्मण ! देख इस पंपा नदी के प्रवाह में, यह बगुला कितना धार्मिक और करुणावतार है । कहीं किसी जीव को कुछ कष्ट न हो जाय, इसलिए वह धीरे-धीरे पांव रख रहा है !'
लक्ष्मण कुछ बोलने ही वाले थे, तभी तट पर एक गड्ढे में पड़े मेंढक ने गर्दन बाहर निकाली, और राम की सरलता पर जैसे व्यंग्यपूर्ण ध्वनि में बोला
" सहवासी विजानाति सहवासि - विचेष्टितम् । बकं किं वर्ण्यते राम ! येनाहं निष्कलीकृतः ।"
- "राम ! किसी के असली स्वभाव और उसकी करतूतों को तो उसका संगी-साथी ही जान पाता है । आप इस बगुले की व्यर्थ ही प्रशंसा कर रहे हैं, इस दुष्ट ने तो मेरा समूचा कूल ही खा डाला ।"
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