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साथो की करतूत
१३५ बाहर में पवित्रता, सदाचार का दिखावा तब तक आडंबर बनाए रखता है, जब तक कोई उसके अन्तर में झांककर नहीं देख ले । और यह अन्तर-दर्शन तभी हो पाता है जब निकटता हो, सहवास हो।
कुछ व्यक्ति इसीलिए आपात-अर्थात देखने में बड़े भद्र एवं सुशील प्रतीत होते हैं, किंतु निकट रहने पर उनकी असलियत कुछ और ही निकलती है। ____ आवायभद्दए णामेगे णो संवासभद्दए।' वे मिलनभद्र होते हैं, संवासभद्र नहीं।
तथागत ने यही भाव मगध सम्राट प्रसेनजित को संबोधित करके कहे थे
संवासेन खो, महाराज, सीलं वेदितव्वं ।२।। "महाराज, किसी के साथ रहने से ही उसके शीलस्वभाव का पता चलता है।"
शील स्वभाव के परिचय की एक घटना रत्नमंजरी में उल्लिखित है-श्रीराम वनवास के समय एक बार पंपा नदी के तट पर पहुंच गये। नदी में जलप्रवाह के बीच एक बगुला धीरे-धीरे पांव उठाए चल रहा था। राम ने बगुले से पूछा- "बकराज ! नदी में इतने धीरेधीरे पांव रख रहे हो, क्या कुछ कष्ट तो नहीं है ?"
१. स्थानांग ४।४
२. उदान ६२
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