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अनुश्रुत श्रुतियाँ “यत्र विश्वं भवत्येकनीडम्२ -वहां पर मानवता का दिव्य रूप व्यक्त हो जाता है। फिर न कोई दुश्मन रहता है न कोई चोर । कोई पराया है ही नहीं, तो कुछ खोने का गम भी नहीं, किसी से कुछ भय भी नहीं।
एक चीनी काव्य में एक राजकुमार की कहानी है। चू प्रदेश का राजकुमार एक बार किसी जंगल में शिकार खेलने गया। राजकुमार का धनुष शिकार खेलते कहीं खोगया । सैनिकों ने कहा- "हजूर ! आज्ञा दीजिए, हम धरती का चप्पा-चप्पा खोज डालेंगे, उस धनुष को कहीं न कहीं से ढूढ़ कर ही लायेंगे।"
उदार राजकुमार ने कहा-"नहीं भाई, क्या जरूरत है ! धनुष इसी चू प्रदेश के ही किसी मनुष्य के पास होगा। चलो, देश की वस्तु देश के ही किसी व्यक्ति के पास होगी न आखिर ।"
महात्मा कन्फ्यूशस् ने जब इस घटना को सुना और राजकुमार की उदारता की बात चली तो कहा-"राजकुमार की दृष्टि संकीर्ण है, उनका दिल छोटा है, नहीं तो वह कहते, चलो, क्या हुआ, एक मनुष्य की वस्तु किसी मनुष्य के ही पास है न ?"
२. ऋगवेद
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