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अनुश्रुत श्रुतियाँ श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर अयोध्या में प्रवेश कर रहे थे। राम के स्वागत में विरहिणी अयोध्य। आज कुलवधू की भांति सजकर मुस्करा रही थी। नगर के श्रेष्ठि वर्ग एवं सामान्य जनसमाज ने हर्ष विभोर हो राम का हार्दिक स्वागत किया।
राम ने नगरजनों को स्नेहपूर्वक कुशल क्षेम पूछा'आप सब कुशल तो हैं।"
"हाँ प्रभु, आपके दर्शन पाकर हम सब परम प्रसन्न हैं।" "घर में बाल-बच्चे और अन्न धान्य सब कुशल हैं ?"-राम ने अपना प्रश्न आगे बढ़ाया ।
वाक्य का अंतिम चरण सुना तो नगरजनों के मुख पर हंसी की एक हलकी-सी रेखा उभर आई-"राम वनवास में अवश्य ही भूख से पीड़ित रहे होंगे।"
"हाँ प्रभु, आपकी कृपा से अन्न धान्य के भंडार भरे हैं..."मंद स्मित के साथ महाजन ने उत्तर दिया । व्यंग्य की तीखी पुट राम से छिपी नहीं रही, पर वे चुप थे।
रामराज्य की नव व्यवस्था के प्रारम्भ में महाराज राम की ओर से महाजनों को प्रीतिभोज के लिए आमंत्रित किया गया। भोजन की प्रतीक्षा में दो चार घड़ी बीत गई, पर अन्न की कहीं गंध भी नहीं आ रही थी। महाजनों की क्ष धा व्याकुल दृष्टि इधर-उधर झांकने लगी कि तभी विविध मणि-रत्नों से सजे स्वर्ण थाल महाजनों के सम्मुख रखे गये और स्वयं महाराज राम ने आग्रह पूर्वक कहा-"महाजनो ! भोजन कीजिए।"
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