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अनुश्रुत श्रुतियाँ को भी आलोकित करता चला जाता है-जैसे घोर तमिस्रा के पश्चात् उदित सहस्रमाली। वह संसार के बुझे दीपकों को अपनी ज्ञान ज्योति से प्रज्वलित करता रहता है। जैसे____ "जह दीवा दीवसयं, पइप्पए सो य दीप्पए दीवो।"' जैसे दीपक स्वयं प्रकाशमान होता हुआ अपने स्पर्श से सैकड़ों अन्य दीपक जला देता है।
नेपाल की बौद्ध कहानियों में भिक्ष, उपगुप्त की एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है। सावन की सघन मेघों भरी अंधियारी रात में भिक्ष, उपगुप्त विहार में निद्रालीन थे। रात के दो पहर बीते होंगे। उत्तर का अंचल नपुरों की रुनझुन से झंकृत हो उठा। झींगुरध्वनि को वेधता हुआ एक मद भरा नाद विहार के निकट आ रहा था। अंधकार में विद्य ल्लता-सी दमकती एक देह-यष्टि विहार में प्रविष्ट हुई। भिक्ष उपगुप्त ने चौंक कर देखा"सुनील अंचल में घृत दीप संजोये नगर की प्रख्यात नर्तकी सुन्दरी वासवदत्ता सामने खड़ी है।" 'कौन ?'-उपगुप्त ने चौंक कर कहा ।
"भिक्ष , मुझे क्षमा करो! पैरों की आहट से आपका निद्रा भंग हो गया है !"-वासवदत्ता विनत भंगिमा के साथ भिक्ष के अत्यंत समीप आकर खड़ी
३. उत्तरा० नि०८
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