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अनुश्रुत श्र ुतियाँ
छिः छिः करते देखकर वासुदेव ने गंभीरता के साथ कहा"आप लोग केवल कुत्त े की दुर्गन्ध देखकर उस पर थूक रहे हैं, किंतु जरा गौर से देखिए इस निकृष्ट प्राणी की दंतपंक्ति भी! कितनी उजली चांदी सी और कितनी सुन्दर ! हम मनुष्यों के दांत भी शायद इतने सुन्दर नहीं मिलते ।"
वासुदेव की दिव्य दृष्टि में दुर्गन्ध की घृणा के स्थान पर श्वेत दंत पक्ति की प्रशंसा देखकर मानव ही नहीं, देवता भी उनकी गुण - ग्राहकता की भूरि-भूरि प्रशंसा कर उठे ।
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