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गुण-दृष्टि जीवन में दो दृष्टियाँ हैंएक 'मधु मक्षिका' की दृष्टि । और दूसरी 'मक्षिका' की।
मधु मक्षिका फूलों का रस ग्रहण करती है, पर उनके तीखे कांटों से स्वयं को बचाकर । कांटों को छोड़कर रस ग्रहण करना यह मधु मक्षिका की दृष्टि है।
दूसरी दृष्टि है--'मक्षिका' की, सुगंधित पदार्थों के संसर्ग को त्याग कर वह गंदगी के ढेर पर जाकर बैठती है।
जीवन में जिसे श्रेय की कामना है, कल्याण और आनन्द की अभिलाषा है वह दृष्टि को सदा अच्छाइयों पर टिकाता है, दुर्गुणों के कांटों को छोड़कर सद्गुणों का रस ग्रहण करता है। इसीलिए उदात्त जीवन का आदर्श बताते हुए कहा है---"महुकार समाबुद्धा''- बुद्धिमान, उदात्त जीवन दृष्टि संपन्न साधक मधुकर-मधु मक्षिका के समान रसग्राही होता है।
१ दशवकालिक ११५
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