________________
आज की समीक्षा
८६
वही पंडित है। तथागत ने कहा--"सणंता यांति कुसोब्भा'-क्ष द्र नदियां शोर करती हुई बहती हैं तो लोग उन्हें ही महानदियाँ समझकर पूजने लगते हैं।
रूसी विद्वान तुर्गनेव ने वर्तमान के इस जीवन मूल्य पर एक करारा व्यंग्य लिखा है
एक व्यक्ति बहुत ही शांत और भद्र था, किंतु लोग उसका मजाक करते-“मुर्ख ! गंवार कहीं का !"
लोगों की बात से उसे चोट पहुचती । एक दिन वह अपनी शांति और भद्रता पर झुझला उठा। उसने लोगों की धारणा बदलने की सोची।
एकदिन कुछ व्यक्ति किसी विख्यात चित्रकार की प्रशंसा कर रहे थे। वह मुर्ख जोर से चीख पड़ा-'अरे तुम्हें इतना भी नहीं मालूम कि, उसकी कला-कृतियों का जमाना कब का गुजर गया, अब तो नई शैलियाँ, नये कलाकार चमक रहे हैं। सभा में उपस्थित लोग सहम कर रह गये शायद ऐसा ही हो।" ।
एक दिन किसी वाचनालय में कुछ व्यक्ति एक लेखक की पुस्तक पर चर्चा कर रहे थे। सभी लोग पुस्तक की प्रशंसा करने लगे। तभी वह मूर्ख जोर से बोल पड़ा-“छिः छिः तुम समय से कितने पीछे हो । वह पुस्तक तो आज रद्दी के भाव भी नहीं बिक सकती, उसका जमाना लद गया।"
१. सुत्तनिपात २१३७६४२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org