________________
झूठी बुराई
,
निंदा नहीं करता जैसा कहता है वैसा ही करता है, वह इस दिव्य माला के योग्य है ।
पुरोहित ने अपने को इन गुणों से युक्त बताया और वह माला भी प्राप्त करली ।
देवपुत्र माला देकर दिव्य-लोक में चले गये। पीछे से पुरोहित के सिर में भयानक दर्द हुआ, उसका सिर फटने लगा, वह व्याकुल हो भूमि पर लोट-पोट होता हुआ चिल्लाने लगा - " मैंने झूठ बोलकर ये पुष्प हार लिए हैं, मैं इनके योग्य नहीं हूँ, मेरे सिर पर से उठालो ।" पर हार मानो लोहे के पट्टे से जकड़ दिए गये हों, किसी भी उपाय से सिर पर से नहीं हटे । पुरोहित की वेदना से राजा भी चिंतित हो गये । सभी नागरिकों के चेहरे पर उदासी छा गई । अमात्यों की सलाह से पुनः उत्सव का आयोजन किया गया । देवपुत्र भी पधारे, उनके दिव्य हारों से पुनः नगर के गली कूचे महक उठे ।
पाखंडी पुरोहित का देव पुत्रों के समक्ष पीठ के बल लिटाया गया । पुरोहित ने क्षमायाचना कर जीवनदान देने की प्रार्थना की। देव पुत्रों ने पाखंडी पुरोहित की झूठी आत्म-स्तुति की भर्त्सना के साथ चारों दिव्यहार उस पर से उठा लिए ।
Jain Education International
- कक्कारु जातक
-
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org